Wednesday, 17 June 2020

रे मन ~ संजय

रे मन, क्यों रहा मचल,
क्यों हो रही, दिल में हलचल।
क्यों अंतरंग रहा घबराह,
मिलेगी मझधार में भी राह।
दूर नहीं अब मंज़िल,
सजेगी तेरे भी सपनों की महफ़िल।
बस कर सच्चे कर्म,
मत ढूंढ अच्छे - बुरे का धर्म।
कर रही कहीं दूर,
कामयाबी तेरा इंतजार।
होगी तेरी ही जीत,
क्यों भूल जाता,
तू ये हर बार।
बस कर इरादों को अटल,
छट जाएंगे गमों के बादल।
रे मन,
मत मचल, मत मचल, मत मचल।

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