Wednesday, 17 June 2020

रिश्ते~संजय

रिश्तों की पराकाष्ठा को इतना भी ना परखें,
कि पत्ते स्वयं ही डालियों का साथ छोड़ दें ।

रे मन ~ संजय

रे मन, क्यों रहा मचल,
क्यों हो रही, दिल में हलचल।
क्यों अंतरंग रहा घबराह,
मिलेगी मझधार में भी राह।
दूर नहीं अब मंज़िल,
सजेगी तेरे भी सपनों की महफ़िल।
बस कर सच्चे कर्म,
मत ढूंढ अच्छे - बुरे का धर्म।
कर रही कहीं दूर,
कामयाबी तेरा इंतजार।
होगी तेरी ही जीत,
क्यों भूल जाता,
तू ये हर बार।
बस कर इरादों को अटल,
छट जाएंगे गमों के बादल।
रे मन,
मत मचल, मत मचल, मत मचल।

जिज्ञासा

पिघलती हुई बर्फ़ 
ना जाने क्या कह गई
स्थिर पर्वतों से
आज भी हवाएं 
बार - बार आकर पूछती हैं।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।

मैं, बेटी मुझे पढ़ाओं,
पढ़ा - लिखा कर आगे बढ़ाओ ।
पढ़ - लिख करू रोशन जग सारा,
शिक्षा है अधिकार हमारा ।

Thursday, 11 June 2020

साल में दिन ये आता है एक बार


साल में दिन ये आता है एक बार,
महकती हैं हवाएं मचलती है बहार।
कहती है फिज़ा मुझसे ये बार-बार,
आज तुम्हारे के जन्मदिन पर 
यही कामना है मेरी,
महकी रहे मधुबन-सी जिंदगी,
खिला रहे गुलाबों सा मन।
कभी ना आये गमों की रजनी,
बरसता रहे खुशियों का सावन।
                                              ✍️  संजय

Thursday, 4 June 2020

आजादी ~ संजय


आजादी ~ संजय


थी मैं ख़ुश बहुत,
सागरों से घिरी हुई |
मन मोहक मारुत बहती थी,
रंग-बिरंगे प्रसूनों को छूती हुई ||

आँखे मेरी ख़ुश थी,
और चेहरे पर मुस्कान |
हर कोई गर्व से कहता,
मेरा भारत महान ||

पर अब आँखों में आंसू लिए ,
हजारों प्रश्न पूछ रही मैं आज |    
सब कुछ छिन गया मेरा ,
मजहब मुझ पर कर रहे राज ||     

एक चुभन है दिल में ,
रूह मेरी तार-तार |
मेरे ह्र्दय पर कर रहे ,
आज अपने ही वार ||

आँचल भीगा रहता मेरा ,
और मन मेरा खाली |
मेरे अपनों ने ही छीन ली,
मुझसे मेरी हरियाली ||

क्या मैं ज्यादा माँग रही हूँ तुमसे ,
क्यों करते मुझ पर मजहबी हाहाकार |
रोता है मन मेरा बहुत जब,
मेरे बच्चें करते आपस में ही नरसंहार ||

गुजर गया बहुत समय अब,
सहते हुए ये अत्याचार |
दे दो मुझको आजादी ,
यही है मेरी करुण पुकार||

  संजय